Friday, March 28, 2014

ओ पलाश

चम-चम -चम चमकते हो 
अग्नि जैसे दहकते हो 
उमंग-उल्लास या फिर 
जो है उसमें संतुष्ट रहने की  चाह 
नहीं किसी से कोई आस 
क्या वजह है तेरी खुशियों की ?
                              बता दे मुझको ओ पलाश -----
मौसम-मस्ती और तन्हाई 
लिए साथ में खुशियाँ आईं 
सौंन्दर्यविहीन वसुंधरा पे 
भाव -विभोर हो जाते हो -----

पथभ्रष्ट  मुसाफिर को 
ये मूलमंत्र बतला देना 
जो दिया है उसको प्रकृति ने 
उसमें जीना उसे सिखा देना 
मेरे,उसके,सबके मन में------
                       ओ पलाश तुम छा जाना--
                        ओ पलाश तुम छा जाना----

Thursday, March 13, 2014

ले लो एक विराम


हौले-हौले झूम के कलियाँ  
नववधू सी शरमा  रही है … 
लिए आँखों में इंद्रधनुषी सपने 
अग्रदूत वसंत का --भौंरा 
गीत मिलन के गा रहा है ---

आम्रकुंज से कोयलिया ने 

पी को है पुकारा ----
कहाँ गया मनमौजी मेरा 
किस सौतन ने घेरा ?

टेसू की  डाली पर छाई 

वासन्तिक बहार 
लिए दामन में सपन-सलोने 
आया रंगों का त्यौहार ---

बचपन ,यौवन और बुढ़ापा 

जीवन के हैं रंग 
काम -काम में हो न जाए 
जीवन ये बेरंग ---

ले लो एक विराम 

कर लो हँसी -ठिठोली 
उमंगों के इस उत्सव को 
भूल न जाना हमजोली ----

प्रकृति  की  इस पुकार को 

न करना नजरअंदाज 
मुरली की  मधुर तान पर --राधारानी ---
झूम रही है आज ---

मन बावला फगुआ गाये 

मस्ती छाई रे 
प्रीत की   पक्की रंग लिए फिर 
होली आई रे …। 
                        आप सभी  को होली की  अग्रिम शुभकामनाएं---


Tuesday, March 4, 2014

बड़े अच्छे लगते हो---

न जाने क्यों तरसते हो 
रह-रह कर मचलते हो 
कभी कटु कभी मृदु 
कौतूहल से भरपूर सत्य ---तुम---
बड़े अच्छे लगते हो---

दुनियाँ आनी -जानी है 
हर शख्स की  अजब कहानी है 
पल-पल बदलते मौसम में 
अटल -अविचल रहते हो 
जिसे  चाहिए जैसा हिस्सा 
वैसा उसे दे देते हो 
सत्य तुम बड़े सच्चे हो -----

विचित्रताओं के हमराज़ 
खुशियों के सरताज़ सत्य ---तुम ---
बड़े अच्छे लगते हो ----

जीवन के हरेक  पड़ाव में 
तेरे साये के शीतल छाँह में 
मैंने जीना सीख लिया है 
क्या बताऊँ ! तेरे संग कैसे 
खुद को मैंने जीत लिया है 
 आगे के जीवन में भी 
संग हमेशा रहना 
बनकर निर्झर निर्मल जल का 
बूँद -बूँद बरसना 
हंसी-ठिठोली करते तुम 
प्यारे से बच्चे लगते हो 
सपनों के सृजक सत्य --तुम--
बड़े अच्छे लगते हो --

   ब्लॉगर साथियों नेट की आँख -मिचौनी की  वजह से १ मार्च के लिय़े लिखी गई रचना को आज पोस्ट कर रही हूँ। सत्य  और उसकी सच्चाई के साथ मेरे जीवन के अनुभवों का निचोड़ है इसमें -----